Saturday, September 24, 2011

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन




|| श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन || 

श्री रामचंद्र कृपालु, भजु मन हरण भवभय दारुणम् ।

नवकञ्ज लोचन, कञ्जमुख, करकञ्ज पद कञ्जारुणम् ॥ १

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुन्दरम् ।

पटपीत मानहुं तड़ित रुचि शुचि नौमि, जनक सुतावरम् ॥ २

॥भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्य-वंश-निकन्दनम् ।

रघुनन्द आनंदकंद कौशल चन्द दशरथ नन्दनम् ॥ ३

॥सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू  अङ्ग विभूषणम् ।

आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् ॥ ४।

।इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् ।

मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलगञ्जनम् ||  ५

मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो 

करुणानिधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो|| ६

एहि भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली 
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली || ७  

सो - जानि गौरी अनुकूल सिय  हिय हरषु न जाइ कहि 

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे || 

|| सियावर रामचंद्र की जय ||
 



सौजन्य से :-



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