Monday, October 24, 2011

|| कबीर अमृतवाणी ||

|| कबीर अमृतवाणी ||

| माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥


| माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।

 कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥


| तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥


| साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
 मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

| रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
 हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥


| दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोई |

जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख कहे का होई ||



सौजन्य से :-





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