Monday, February 23, 2015

सत्य ही आखिर भगवान है


॥ सत्य ही आखिर भगवान है

सत्य क्या है ? आज के इस युग में सत्य की परिभाषा देना अत्यंत ही कठिन सा हो गया है | क्योंकि आज के इस कलियुग में मनुष्य रुपी जीव सत्य से बचता हुआ सा नजर आता है या कहिये सत्य से बचने में ही मनुष्य रुपी जीव अपनी भलाई समझता है | किन्तु सत्य तो सत्य है सवतः ही वाणी के रूप में मुख पर आ जाता है ऐसे सत्य की सदा ही जय हो | आज का मनुष्य रुपी जीव धर्म अनुयायियों की संगति में ही सत्य की उपस्थिति महसूस करता है एवं धर्म अनुयायियों का श्रोता बन अपने को सत्य के साथ जोड़ने में लगा रहता है | किन्तु इतना ज्ञान होने के बावजूद भी ये भूल जाता है कि सत्य को अपनाने के लिए किसी भी धार्मिक सभा से जुड़ना जरूरी नहीं है | सत्य तो मनुष्य रुपी जीव के मन का एक विश्वास है जो परमपिता परमात्मा को अविलम्ब स्वीकृत है |
शास्त्रो में कहा गया है कि असत्य रुपी पापकर्म से मनुष्य रुपी जीव को सर्वदा ही मुक्त रहना चाहिए एवं दूर रहना चाहिए  क्योंकि असत्य रुपी पापकर्म उस घट कि भांति है जो अविलम्ब एवं निरंतर हमारे द्वारा किये गए पाप कर्मों द्वारा स्वतः ही भरने में लगा रहता है | आज के इस कलियुग में समस्त पृथ्वी लोक पर असत्य रुपी पापकर्म ने अपनी जड़ो को पूर्ण रूप से फैला रखा है | जिसका पूरा श्रेय भी मनुष्य रुपी जीव को ही जाता है | आज असत्य रुपी पापकर्म ने हमारे अंतर्मन में पनप रही विश्वास रुपी जड़ो को खोखला सा कर दिया है जिसके कारण हमें सत्य का मार्ग भी दुर्गम पहाड़ सा प्रतीत होता हुआ नजर आता है |
आज के इस युग में मनुष्य रुपी जीव अपने उद्देश्यों की पूर्ती हेतु असत्य रुपी पापकर्म का सहारा ले अपने को उच्च शिखर तक पहुँचाने में लगा रहता है | वास्तव में इस कलियुग में जब - जब मनुष्य रुपी जीव असत्य का साथ देता है एवं असत्य रुपी पापकर्मों द्वारा निर्बल एवं असहायों को कष्ट पहुंचाता है तब - तब मनुष्य रुपी जीव के अंदर अहंकार रुपी पापकर्म जन्म ले अपनी जड़ो की निरंतर वृद्धि करने में लगा रहता है और अंत समय में यही अहंकार रुपी पापकर्म असत्य रुपी पापकर्मों के रूप में मनुष्य रुपी जीव को आकस्मिक रूप से मृत्यु शैय्या तक पहुँचा देता है जिसके पश्चात मनुष्य रुपी जीव को पछताने के सिवाय कुछ भी प्राप्त नहीं होता |

अन्तः आज के इस कलियुग में मनुष्य रुपी जीव को अपने जीवन में कष्टों की निर्वृत्ति हेतु परमपिता परमात्मा की स्तुति के साथ - साथ सत्य रुपी सत्कर्म का भी पालन करना चाहिए ||  

आज के इस युग में कई मनुष्य रुपी जीव अपने को भगवान का अनुयायी बताने में लगे रहते है एवं समस्त जगह अपनी शक्ति का प्रचार करने एवं करवाने में लगे रहते है यदि आपको ऐसे मनुष्य रुपी जीवों का सत्य जानना है तो उनसे केवल सत्य का अनुसरण करने की बात कहे उनसे पूछे कि वह दिन - रात्रि काल में कितनी बार सत्य का अनुसरण करते है आपको तुरंत ही उस मनुष्य रुपी जीव की शक्ति का ज्ञात हो जाएगा क्योंकि सत्य ही भगवान है |

सत्य का अनुसरण करना ही परमपिता परमात्मा का अनुसरण करना है |

॥ चलो चले ज्योतिष की ओर  ॥
॥ अन्धविश्वास से विश्वास की ओर ॥


सौजन्य से :-

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