Thursday, December 26, 2019

|| ज़िन्दगी के इस सफर में ||

|| मंजिल || 

मैं ये सोचकर चला था घर से,
कि शायद मिलेगी मंजिल, किसी मोड़ से,
मोड़ तो नज़र आये, पर मंजिल नजर न आई...

फिर सोचा कि शायद अभी कई मोड़ बाकी है,
ज़िन्दगी के इस सफर में |

मंजिल न पाने की चाह में बहुत निराश हुआ ,
एक अपनों का साथ था उन्होंने भी हताश किया

अब तो हर बात पर खुद को ही कोसकर रह जाता हूँ
अपनी नाकामियाँ खुद को ही सुनाता चला जाता हूँ 

लगता है अभी कई ठोकरे खानी है इसी भ्रम में,
मैं ये सोचकर चला था........ 

अवसरों की तलाश में चला जा रहा  हूँ
ठोकरों के इस भँवर में कई ठोकरें मैं भी खा रहा  हूँ
कुछ मिले जिन्होंने उम्मीद की किरण दिखाई थी,

उस समय लगा कि शायद अब मंजिल करीब आई थी |
मंजिल तो न मिली लेकिन इंतजार किया मंजिल पाने की चाह में,

 
मैं ये सोचकर चला था घर से,
कि शायद मिलेगी मंजिल, किसी मोड़ से,
मोड़ तो कई नज़र आये, पर मंजिल नजर न आई...

फिर सोचा कि शायद अभी कई ओर मोड़ बाकी है,

ज़िन्दगी के इस सफर में |


सौजन्य से :-


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