Wednesday, February 5, 2020

दुख सफलता का आधार


“ दुख ” सफलता का आधार ?         
                                      
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार इस सांसारिक जीवन में काम, क्रोध, लोभ एवम् मोह को दुख का कारक बताया गया है एवं कहा गया है कि  काम, क्रोध, लोभ एवम् मोह का जो त्याग कर जीवन व्यतीत करता है वह दुख से कोसो दूर रहता है | प्रत्येक मनुष्य रूपी जीव संतों के समागम का सहारा लेकर अपने को इन्ही सब कारणों से दूर रखने का भरपूर प्रयास करता है एवम् सोचता है कि कोई ऐसी तकनीक निर्मित हो जिसके कारण दुख का अंत हो जाये किन्तु आज के इस  वैज्ञानिक युग में भी दुख को दूर करने की कोई तकनीक मानव जीवन हेतु पूर्ण रूप से निर्मित नहीं हो पायी है सांसारिक जीवन में मनुष्य रूपी जीव दुख को दूर करने के लिए  क्या - २ उपाय नहीं करता कभी मंदिरों में भगवान के समक्ष उपस्थित हो अपने दुखों का बखान करता है तो कभी जादू - टोनो का सहारा ले अपने को दुख से दूर करने का प्रयास करता है और कभी - कभी अपनी जन्म -कुंडली को ज्योतिषाचार्यों के समक्ष प्रस्तुत कर अपने दुख के निवारण हेतु उनसे प्रार्थना करता है | किन्तु वह यह भूल जाता है कि दुख तो एक कठोर मार्ग दर्शक है जो कि सदैव मनुष्य रूपी जीव के साथ अपना लगाव बनाये रखता है एवं उसे अपने लक्ष्य के प्रति सचेत बनाये रखता है | लेकिन सोचने योग्य तथ्य यह है की जन्म -कुंडली के अंदर छठे, आठवें और बारहवें भावों के अलावा  दुख का भाव और कौन सा है और दुख मनुष्यरूपी जीव को कौन से भाव से मिलता  है समस्त जन्म -  कुंडली का अवलोकन करने के पश्चात जिस भाव का ज्ञात होता है वह  है जन्म -कुंडली का पंचम भाव  क्योंकि पंचम भाव ही है जो मनुष्यरूपी जीव को  पूर्व जन्म के कर्मों  के अनुसार  फल प्रदान करता है एवं जन्म - कुंडली के द्वारा  घटित होने वाली घटनाओं जो की मनुष्यरूपी जीव को वर्तमान में , भविष्य में जन्म -कुंडली के छठे , आठवें और बारहवें भावों पर विराजित ग्रहों के अनुसार प्राप्त होती है उसका अनुसरण करता है|

सांसारिक जीवन में जिन्होने दुख को सफलता का आधार मान पूर्ण रूप से स्वीकृत किया है वे ही सदैव अग्रणी रहे है एवम् जिन्होने दुख से अपने को कोसो दूर रखने का प्रयत्‍न किया है वे इस सांसारिक जीवन में सदैव एक कुऐं के मेढक की भांति उजागर हुए है |

सही अर्थो में दुख क्या है ?

१। क्या अपनी आवशयकताओं के अनुसार लाभ प्राप्त न हो पाना ये दुख है ?

२। क्या अपने मन को हर क्षण चिंतित बनाये रखना ये दुख है ?

वास्तविकता में दुख तो एक कठोर मार्गदर्शक है जो मनुष्यरूपी जीव को उसके लक्ष्य के प्रति सजग रखता है एवम् उसको उसके लक्ष्य की प्राप्ति प्रदान करता है |

ज्योतिषीय दृष्टिकोण के आधार पर:-
 आज प्रत्येक मनुष्यरुपी जीव अपनी दुखी अवस्था में अपनी जन्म - कुंडली का सहारा लेता है अर्थात अपने दुख को दूर करने हेतु ज्योतिषाचार्यों की सलाह का अनुसरण करता है किन्तु जन्म - कुंडली का अध्ययन करने के पश्चात जब समस्त ज्योतिषाचार्य मनुष्यरुपी जीव को निम्न प्रकार के उपाय प्रदान करते है और उन उपायों के अनुसार मनुष्यरुपी जीव को मजबूती के साथ डटें रहने के लिए प्रेरित करते है तब उन उपायों का मजबूती के साथ पालन करना भी मनुष्यरूपी जीव के लिए दुख स्वरुप हो जाता है |
ज्योतिष को आधार मान समस्त ज्योतिषाचार्य जन्म- कुंडली के तीन भावों (घरों) को मनुष्यरूपी जीव के दुख का आधार मान इन भावों से बचने की सलाह मनुष्यरूपी जीव को  प्रदान करते है किन्तु जब कुंडली का पूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है तो ज्ञात होता है कि जन्म - कुंडली के अंदर ये तीन भाव (घर) ही मनुष्यरूपी जीव के लिए क्षणिक भर के सुख का निर्माण करते है और उसके बीते हुए दुख को सम्मान के  रूप में समस्त सृष्टि के बीच उजागर भी करते है अर्थात कालपुरुष कुंडली का अध्ययन करने के पश्चात जन्म-  कुंडली का छठा भाव (घर) जिस भाव (घर) पर कन्या राशि का उदय होता है जिसका स्वामी स्वयं बुद्ध ग्रह होता है एवं जिस भाव को मनुष्य रुपी जीव के  लिए कष्टकारी भी माना जाता है दुसरे शब्दों में दुख का कारक माना जाता है उसी कन्या राशि का स्वामी बुद्ध ग्रह अपने



इस भाव (घर) पर अपनी उच्च अवस्था का माना जाता है अन्तः ये भाव मनुष्यरूपी जीव की कुशाग्र बुद्धि को उजागर करता है और उसे अपने दुखों को अपना मान सफलता के रथ पर चढ़ने के लिए प्रेरित करता है |
इसी प्रकार जन्म - कुंडली का आठवां एवं गुप्त भाव (घर) जिस भाव (घर) पर वृश्चिक राशि का उदय होता है एवं जिस भाव को अमंगल का कारक माना जाता है उसी भाव का स्वामी स्वयं मंगल ग्रह होता है | इस भाव पर मनुष्यरूपी जीव का चन्द्र ग्रह नीच का हो जाता है अर्थात चन्द्र ग्रह की तुलना हम मनुष्यरूपी जीव के मन से करते है वह मन जो कि मनुष्यरूपी जीव को चंचल युक्त भी बनाता है एवं मंगल ग्रह के  भाव (घर) में होने की कारण साहसी भी  |

 जिस कारण एक हिंदी कहावत भी प्रसिद्द है कि "मन की हारे हार है | मन की जीते जीत || " किन्तु चंचल युक्त मन के कारण कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता अतएव चन्द्र ग्रह या मन की नीच अवस्था यहाँ पर मनुष्यरूपी जीव को दुख की स्तिथि प्रदान करती है जिस कारण मनुष्य अपने को दुखी महसूस करता है किन्तु मनुष्य रुपी जीव को यहाँ पर मंगल की साहसिक स्तिथि का भी ज्ञान होना चाहिए क्योंकि दुख ही है जो मनुष्यरुपी जीव के अंदर भरपूर साहस का निर्माण करता है |
अंत में दुख का प्रमुख केंद्र जो कि जन्म - कुंडली का बारहवां भाव (घर) है

जिसे हम व्यय भाव के  नाम से भी जन्म-कुंडली के अंदर प्रसिद्धि प्रदान  करते है  किन्तु ये भूल जाते है कि ये वही भाव (घर) है जिसका स्वामित्व दैवीय गुरु बृहस्पति को प्रदान किया गया है जिस कारण ये भाव (घर) अत्यन्त शुभ माना गया है इस भाव (घर) पर चिंताजनक जो तथ्य है वह दैत्य गुरु शुक्र ग्रह का उच्च का होना है इस आधार पर ज्ञात होता है कि शुक्र ग्रह ही है जो मनुष्यरूपी जीव को सुख - संसाधनो की और प्रेरित करते है एवं लालायित करते है जिस कारण फिर से मनुष्यरूपी जीव अपने को दुख के  चक्रव्यूह में फंसा हुआ महसूस करता है एवं अपने को इस भाव से बचाने का प्रयास भी  करता है किन्तु वह यह भूल जाता है कि जिस भाव (घर) को वह दुख मान रहा है वह भाव (घर) तो उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की लिए प्रेरित एवं लालायित कर रहा है और बृहस्पति ग्रह का भाव होने के कारण उसे परमात्मा का अनुसरण करने के लिए बाध्य भी कर रहा है  |
“अतएव यदि परमात्मा का नियमित रूप से अनुसरण करना और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सुख का त्याग करना दुख है तो वह दुख मनुष्यरूपी जीव के लिए सफलता का आधार है |”
चलो चले ज्योतिष की औरअंधविश्वास से विश्वास की और ||
सौजन्य से :-


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