Monday, February 23, 2015

ज्योतिष की उपयोगिता

ज्योतिष की उपयोगिता
संसार में ज्योतिष (ज्योति + ईश ) का स्वरुप ईश्वरीय नेत्रों एवं ईश्वरीय ज्योति के रूप में विद्यमान है | कहा जाता हैकि ज्योतिष की उत्पत्ति पृथ्वीलोक पर मनुष्यरुपी जीव की सहायता हेतुब्रह्म देव द्वारा उनके पुत्र देवऋषि नारद मुनि केआग्रह करनेपर हुई थी | वेदों में भी ज्योतिष अपने सूक्षम ज्ञान के कारण पूर्ण रूप से उपलब्ध है या कहिये वेदों में भी किसी न किसी माध्यम से कही न कही ज्योतिष का वर्णन हमें पूर्ण रूप से प्राप्त हो जाता है | सतयुग से लेकर कलियुग तक ज्योतिष ने अपनी गरिमा एवं अपनी छवि को जीवित रखा हुआ है इस प्रकार सेइस वैज्ञानिक युग में ज्योतिष एवंउसकी उपयोगिता का वर्णन करना प्रशंसनीय सा कार्य प्रतीत होता हुआ महसूस होता है | ज्योतिष पौराणिक काल सेही समस्त विद्वजनो में अपनी विश्वसनीय एवं प्रशंसनीय छवि बनाये हुए है जिसके कारण हर युग में ज्योतिष एवं उसकी उपयोगिता का आदर - सत्कार होता है |

वास्तविकता में ज्योतिष एक विज्ञान है जिसके द्वारा मनुष्यरुपी जीव भविष्य में होने वाली मौसम एवं प्राकृत्तिक आपदाओं से सम्बंधित घटनाओं एवं परिणामों की जानकारी पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकता है |

प्राचीन काल में ज्योतिष के माध्यम से ही राज्यों के अंदर होने वाली समस्त घटनाओ एवं परिणामों का अध्ययन किया जाता था | ज्योतिष ने हर युग में हर पल एक सच्चेमार्ग दर्शक के रूप में अपना कार्य किया है किन्तु आज ज्योतिष इस वैज्ञानिक युग में अपनी विश्वसनीय छवि को अंधविश्वासी छवि के रूप में प्राप्त करता नज़र आ रहा है | जो कि एक चिंता का विषय है अतएव इस चिंता में ज्योतिष के प्रति चिंतन अत्यंत आवश्यक हो गया है ज्योतिष के प्रति चिंतन करने से ज्ञात होता है कि ज्योतिष जिसने अपने अंदर समस्त ग्रहों एवं नक्षत्रों को समाहित कर रखा है | जिसका आह्वान सत्य एवं समय के साथ - साथ किया जाता रहा है वही ज्योतिष आज के इस वैज्ञानिक युग में अपनी विश्वसनीयता को सत्य सिद्ध करने में पूर्ण रूप से कमजोर सा नज़र आता है| जो कि ज्योतिष के प्रति गंभीर चिंतन को जन्म देता है |

ज्योतिष जिसकी गणना अत्यधिक प्रबल है | ज्योतिष अपनी गणनानुसार भाग्य से अधिक कर्म पर बल देता है और कर्म के अनुसार ही फल प्रदान करने की क्षमता प्रदान करता है | ज्योतिष ही है जो अपनी गणनानुसार मनुष्य रुपी जीव को उसकी जन्म - कुंडली के माध्यम से सही मार्ग की जानकारी प्रदान करता है चाहे वह जानकारी उसके कर्म से सम्बंधित हो या उसके भाग्य से सम्बंधित | ज्योतिष मनुष्य रुपी जीव को अपनी गणनानुसार हर क्षण सफलता एवं प्रसन्नता प्रदान करने की क्षमता  रखता है |

ज्योतिष अपनी गणनानुसार कालपुरुष की कुंडली मे नवम भाव द्वारा भाग्य भाव का अनुसरण करता है एवं नवम से नवम भाव के द्वारा पंचम भाव का | यही पंचम भाव मनुष्यरुपी जीव के पूर्वजन्म का प्रारब्ध होता है वास्तविकता में ज्योतिष की उपयोगिता मनुष्य रुपी जीव के लिए इस जन्म में एवं इस वैज्ञानिक युग मे पूर्ण रूप से सहायक सिद्ध है किन्तु आज के इस युग का मनुष्य रुपी जीव ज्योतिष को मायाजाल एवं अंधविश्वास के रूप में प्रस्तुत करता एवं ज्योतिष के प्रति अभद्र टिप्पणी करता नज़र आता है वह यह भूल जाता है कि जिस प्रकार पृथ्वी पर नव ग्रहों में से दो ग्रह सूर्य और चन्द्र प्रत्यक्ष एवं पूर्ण रूप से विद्यमान है उसी प्रकार ज्योतिष एवं उसकी उपयोगिता का भी स्वरुप इस संसार में पूर्ण रूप से विद्यमान है जिस प्रकार सरोवर में खिलता हुआ कमल प्राप्त करने हेतु कीचड रुपी सरोवर में उतरना होता है उसी प्रकार ज्योतिष एवं उसकी उपयोगिता को यदि पूर्ण रूप से ज्ञात एवं प्राप्त करना है तो मनुष्य रुपी जीव को ज्योतिष रुपी महासागर का पूर्ण रूप से अध्ययन करना होगा न कि सागर से दो - चार बून्द लेकर ये कहना कि मुझे सागर की गहराई का ज्ञान है | यदि आज ज्योतिष एवं उसकी उपयोगिता का सही एवं सटीक प्रमाण प्राप्त करना है तो मनुष्य रुपी जीव को ज्योतिष एवं उसकी उपयोगिता के प्रति वही विश्वास अपने मन में जाग्रत करना होगा जो कि वह ईश्वर के प्रति रखता है ज्योतिष प्रत्येक मनुष्यरुपी जीव को चिंता के समय चिंतन करने की सलाह प्रदान करता है न कि चिंता के समय अपना समय व्यर्थ करने की | अतएव प्रत्येक मनुष्य रुपी जीव को इस पृथ्वी लोक पर सदैव अपनी मृत्यु के साथ - २ अपने जन्म समय का भी ज्ञान होना चाहिए क्योंकि जिस मनुष्यरुपी जीव को इस युग में अपने जन्म समय का ज्ञान है वही वास्तव में ज्योतिष एवं उसकी उपयोगिता का सही एवं सटीक लाभ प्राप्त कर सकता है |

॥ चलो चले ज्योतिष की ओर  ॥
॥ अन्धविश्वास से विश्वास की ओर ॥ 

सौजन्य से :-

सत्य ही आखिर भगवान है


॥ सत्य ही आखिर भगवान है

सत्य क्या है ? आज के इस युग में सत्य की परिभाषा देना अत्यंत ही कठिन सा हो गया है | क्योंकि आज के इस कलियुग में मनुष्य रुपी जीव सत्य से बचता हुआ सा नजर आता है या कहिये सत्य से बचने में ही मनुष्य रुपी जीव अपनी भलाई समझता है | किन्तु सत्य तो सत्य है सवतः ही वाणी के रूप में मुख पर आ जाता है ऐसे सत्य की सदा ही जय हो | आज का मनुष्य रुपी जीव धर्म अनुयायियों की संगति में ही सत्य की उपस्थिति महसूस करता है एवं धर्म अनुयायियों का श्रोता बन अपने को सत्य के साथ जोड़ने में लगा रहता है | किन्तु इतना ज्ञान होने के बावजूद भी ये भूल जाता है कि सत्य को अपनाने के लिए किसी भी धार्मिक सभा से जुड़ना जरूरी नहीं है | सत्य तो मनुष्य रुपी जीव के मन का एक विश्वास है जो परमपिता परमात्मा को अविलम्ब स्वीकृत है |
शास्त्रो में कहा गया है कि असत्य रुपी पापकर्म से मनुष्य रुपी जीव को सर्वदा ही मुक्त रहना चाहिए एवं दूर रहना चाहिए  क्योंकि असत्य रुपी पापकर्म उस घट कि भांति है जो अविलम्ब एवं निरंतर हमारे द्वारा किये गए पाप कर्मों द्वारा स्वतः ही भरने में लगा रहता है | आज के इस कलियुग में समस्त पृथ्वी लोक पर असत्य रुपी पापकर्म ने अपनी जड़ो को पूर्ण रूप से फैला रखा है | जिसका पूरा श्रेय भी मनुष्य रुपी जीव को ही जाता है | आज असत्य रुपी पापकर्म ने हमारे अंतर्मन में पनप रही विश्वास रुपी जड़ो को खोखला सा कर दिया है जिसके कारण हमें सत्य का मार्ग भी दुर्गम पहाड़ सा प्रतीत होता हुआ नजर आता है |
आज के इस युग में मनुष्य रुपी जीव अपने उद्देश्यों की पूर्ती हेतु असत्य रुपी पापकर्म का सहारा ले अपने को उच्च शिखर तक पहुँचाने में लगा रहता है | वास्तव में इस कलियुग में जब - जब मनुष्य रुपी जीव असत्य का साथ देता है एवं असत्य रुपी पापकर्मों द्वारा निर्बल एवं असहायों को कष्ट पहुंचाता है तब - तब मनुष्य रुपी जीव के अंदर अहंकार रुपी पापकर्म जन्म ले अपनी जड़ो की निरंतर वृद्धि करने में लगा रहता है और अंत समय में यही अहंकार रुपी पापकर्म असत्य रुपी पापकर्मों के रूप में मनुष्य रुपी जीव को आकस्मिक रूप से मृत्यु शैय्या तक पहुँचा देता है जिसके पश्चात मनुष्य रुपी जीव को पछताने के सिवाय कुछ भी प्राप्त नहीं होता |

अन्तः आज के इस कलियुग में मनुष्य रुपी जीव को अपने जीवन में कष्टों की निर्वृत्ति हेतु परमपिता परमात्मा की स्तुति के साथ - साथ सत्य रुपी सत्कर्म का भी पालन करना चाहिए ||  

आज के इस युग में कई मनुष्य रुपी जीव अपने को भगवान का अनुयायी बताने में लगे रहते है एवं समस्त जगह अपनी शक्ति का प्रचार करने एवं करवाने में लगे रहते है यदि आपको ऐसे मनुष्य रुपी जीवों का सत्य जानना है तो उनसे केवल सत्य का अनुसरण करने की बात कहे उनसे पूछे कि वह दिन - रात्रि काल में कितनी बार सत्य का अनुसरण करते है आपको तुरंत ही उस मनुष्य रुपी जीव की शक्ति का ज्ञात हो जाएगा क्योंकि सत्य ही भगवान है |

सत्य का अनुसरण करना ही परमपिता परमात्मा का अनुसरण करना है |

॥ चलो चले ज्योतिष की ओर  ॥
॥ अन्धविश्वास से विश्वास की ओर ॥


सौजन्य से :-

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