Saturday, February 22, 2020

फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष आमलकी एकादशी व्रत माहात्म्य

फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष आमलकी  एकादशी व्रत माहात्म्य 

श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी से कहा ! हे धर्म राज  फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी है | इसका माहात्म्य सुनो | 


एक समय राजा मान्धाता ने वशिष्ठ  मुनि जी से पूछा कि मासानुसार फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष हेतू समस्त पापों का नाश करने वाला कौन सा व्रत है ? कृपा कर बताए वशिष्ठ मुनि जी बोले- प्राचीन समय की बात है  वैश्य नाम की नगरी में चंद्रवंशी राजा चैत्ररथ नाम का राजा राज्य करता था | वह बड़ा धर्मात्मा था, प्रजा भी उसकी वैष्णव थी | बालक से लेकर वृद्ध तक आमलकी एकादशी का व्रत किया करते थे | एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आयी और नगर निवासियों ने रात्रि को जागरण किया, मंदिर में कथा कीर्तन करने लगे | एक बहेलिया जो कि जीव हिंसा से उदर  पालन किया करता था |मंदिर में कथा कीर्तन के समय एक कोने में जा बैठा | आज वह शिकारी घर से दुखी होकर आया था | उसने दिन भर कुछ खाया - पिया भी नहीं  था और रात्रि को समय व्यतीत करने हेतू  मंदिर में आकर  बैठ गया था  | उसी समय वहाँ श्री विष्णु भगवान् की कथा एवं आमलकी एकादशी व्रत का गुणगान सुनाया जा रहा था जो कि उसने भी सुना , रात्रि पहर व्यतीत हो जाने पर प्रातः काल होते ही वह अपने घर को चला गया | कुछ समय  पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी किन्तु उसने अपने पिछले जन्म में आमलकी  एकादशी व्रत का माहात्म्य सुना था तो उस आमलकी एकादशी व्रत के प्रभाव से उसका अगला जन्म एक महान राजा विदूरथ  के घर हुआ | उस बहेलिये का नाम इस जन्म में राजा वसूरत प्रसिद्द  हुआ | एक दिन राजा वसूरत वन विहार हेतू जंगल की ओर  गया किन्तु दिशा का ज्ञान न हो पाने के कारण वह मार्ग में भटक गया किन्तु  रात्रि अधिक होने के कारण राजा वसूरत  रात्रि  पहर व्यतीत करने हेतू  एक वृक्ष के नीचे सो गया | उस दिन आमलकी एकादशी थी और समस्त राज्य में बालक से लेकर वृद्ध तक ने आमलकी एकादशी का व्रत धारण किया हुआ था अतएव राजा वसूरत  ने भी आमलकी  एकादशी का व्रत ले रखा था | उस समय राजा न्यायिक हुआ करते थे जिसके चलते राजा वसूरत ने मलेच्छों के सम्बन्धियों को किसी दोष के कारण दण्डित किया हुआ था | मलेच्छों का एक समूह उसी रात्रि जंगल मार्ग से होकर गुजर रहा था तभी उनकी दृष्टि सोये हुए राजा वसूरत पर पड़ी | मलेच्छों को राजा से अपने सम्बन्धियों के दंड का बदला लेना था | उस समय सोते  हुए राजा ने भगवान् का ध्यान लगाया हुआ था | जैसे ही मलेच्छों  का समूह  राजा वसूरत को मारने के लिए आगे बढ़ा  उसी समय राजा वसूरत के शरीर से एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई यह कन्या आमलकी  एकादशी के  व्रत के प्रभाव से उत्पन्न हुई थी | कन्या ने सोये हुए एवं भगवान् श्री विष्णु जी के ध्यान में लगे हुए  राजा वसूरत को बचाने हेतू  कालिका माता के समान मलेच्छों पर अपना खप्पर फिराया और मलेच्छों के रुधिर की भिक्षा लेकर अंतर्ध्यान हो गई | प्रातः काल  होते ही राजा वसूरत जैसे ही निद्रा से उठा उसने अपने चारों ओर मलेच्छों को मरा हुआ देखा | राजा वसूरत तभी मन ही मन  कहने लगा एवं आश्चर्य करने लगा कि मेरी रक्षा किसने की होगी ? तभी आकाशवाणी हुई  कि हे राजन! आमलकी  एकादशी के प्रभाव से भगवान् श्री विष्णु जी ने तुम्हारी रक्षा की है इतना सुनते ही राजा वसूरत अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने राज्य में  पहुँचकर सभी ब्राह्मणो को बुलाकर मंत्रोच्चार सहित भगवान् श्री विष्णु जी का सुमिरन करने लगा एवं भक्ति भाव सहित प्रत्येक फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष को आमलकी  एकादशी का भी पूजन करने लगा| जो मनुष्य आमलकी एकादशी का व्रत धारण करते हैं, वे अपने प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अन्त में विष्णुलोक को प्राप्त होते  हैं।
|| इति  आमलकी  एकादशी माहात्म्य समाप्त || 
सौजन्य से :-

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