Sunday, March 15, 2020

जन्म-कुण्डली के महादशानाथों के स्वभाविक फल




जन्म-कुण्डली के महादशानाथों के स्वभाविक फल 

सूर्य: प्रदेशवास, भूमि, राजद्वार, शास्त्र और औषधि से धन की प्राप्ति, अग्नि से भय, पिता से वियोग, दांत, नेत्र, उदर की पीड़ा |

चन्द्रमा: मन्त्र, वेद, ब्राह्मणों में रुचि, राजा और अधिकारियों की प्रसन्नता, युवतिओं, पुष्प, गंध और आभूषण आदि सुख  के साधनो की प्राप्ति, कौशल,कीर्ति, ख्याति, नम्रता, परोपकार,आलस , कफ, कलह, वाद- विवाद |

मंगल: राज्य से सम्बन्धित, शत्रु विजय से सम्बन्धित, अस्त्र निर्माण से सम्बन्धित, झगड़े से, धूर्तता से सम्बन्धित, औषधियों से सम्बन्धित, क्रूर- क्रियाओं से सम्बन्धित धन प्राप्त होता है | रूधिरजनित बीमारियाँ,  कलह, स्त्री, भाई-बहिनों से दुःख, दुष्टों का साथ, बंधन भी होता है | 

बृहस्पति: देवार्चन, धर्म, श्रेष्ठ कर्म, यज्ञ, तीर्थाटन, आदि कार्यों में रुचि जाग्रत  होती है | सुख शान्ति होती है | उत्तम पुरूषों का संग रहता है | गले में, टाँगो में पीड़ा भी हो सकती है |

शनि: कृषि, पशु-पालन आदि से धन की प्राप्ति, ग्राम, नगर, जाति में अधिकार मिलना, बुद्धि विलास,कुल की उन्नति, कीर्ति , यश की प्राप्ति | आलस्य, निद्रा, अंग  पीड़ा, गुप्त रोग,बदनामी भी होती है |

बुध: कुटुम्ब, मित्र, बुद्धि, द्वारा धन प्राप्ति, द्र्युत कार्य, सुख  और शान्ति , क्रय-विक्रय का कार्य, उद्यमी, कारीगरी, और प्रवचन आदि से यश और नाम प्राप्त होता है| हास्य, संगीत, जुआ, मानसिक विकार, आदि भी हो सकता है|

शुक्र: स्त्री, सन्तान , धन, उत्तम वस्त्र, गन्ध, आभूषण, गायन-वादन, नृत्य, अभिसार, काम-चेष्टा का सुख प्राप्त होता है | घरेलू झगड़े, वात कफ  का प्रकोप निर्बलता, सन्ताप, नीच जनो से बैर, मित्रों से विरोध भी होता है |

राहु: सुख सम्पत्ति का नाश, पुत्र- कलत्र आदि का वियोग, दुःख और परदेश वास, विवाह होना, पुण्य का उदय होना, विदेश यात्रा और सम्मान वृद्धि भी होती है |

केतु: सुख की कमी, दीन, दुःखी, निर्बुद्धि, रोगी, और विवेकहीनता होती है | मन में सन्ताप भी रहता है| धर्म की ओर  प्रवृत होना, चित्त में दृढ़ता और कठिन कार्य में सफलता भी होती है| केतु की दशा में बीमारियों का सही निवारण नहीं हो पाता है | 

सौजन्य से :-

Sunday, March 1, 2020

मंगलाचरणम 
स जयति सिंधुरवदनो देवो यत्पाद पंकजस्मरणं | 
वासरमणिरिव तमसां राशीननाशयति विघ्नानाम || १ || 
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः | 
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः || २ ||  
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन: | 
द्वादशैतानि नामानि य: पठेत्श्रुणुयादपि || ३ || 
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा | 
संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते || ४ || 
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम | 
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये || ५ || 
व्यासं वशिष्ठनप्तारम शकते: पौत्रंकल्मषम |  
पराशरात्मजं वन्दे शुक्तातं तपोनिधिम || ६ || 
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे | 
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम: || ७ || 
अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरि: | 
अभाललोचन: शम्भुरभगवानवादरायण: || ८ ||   

हिंदी-अनुवाद 

उन गजवदन देवाधिदेव की जय हो, जिनके चरण कमल का स्मरण सम्पूर्ण विघ्न समूह को इस प्रकार नष्ट  कर देता है जैसे सूर्य अन्धकार राशि को||१|| जो पुरुष विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, निर्गमन, संग्राम के समय सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र , और गजानन इन बारह नामों का पाठ या श्रवण भी करता है उसे किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं होता है | जो श्वेत वस्त्र धारण किये है चन्द्रमा के समान जिनका वर्ण है तथा जो प्रसन्नवदन है उन देवाधिदेव चतुर्भुज भगवान् विष्णु का सब विघ्नो की निर्वृत्ती के लिए ध्यान, स्मरण , व् पूजन करना चाहिए | जो वशिष्ठ जी के प्रपौत्र शक्ति के पौत्र पाराशर जी के पुत्र तथा शुकदेवजी के पिता है, उन निष्पाप, तपोनिधि व्यास जी कि मैं वंदना करता हूँ | व्यास ही विष्णु रूप है और विष्णु स्वयं ही व्यास जी के रूप में अवतरित हुए है| मैं वशिष्ठवंशज ब्रह्मनिधि श्रीव्यास जी को बारम्बार नमस्कार करता हूँ | भगवान् वेदव्यास जी चार मुख के ब्रह्मा है, दो भुजाओ वाले दूसरे  विष्णु है और ललाटलोचन (तीसरे नेत्र) से रहित साक्षात महादेव जी है | 

सौजन्य से :-

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