Sunday, April 12, 2020

लिङ्गाष्टकम





|| ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगम निर्मलभासित शोभितलिंगम
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || १


|| देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम कामदहं करुणाकरलिंगम
रावणदर्पविनाशन लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || २


|| सर्वसुगन्धिसुलेपित लिंगम बुद्धि विवर्धनकारणलिंगम
सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || ३


|| कनकमहामणिभूषितलिंगम  फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम
दक्षसुयज्ञविनाशकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ||  ४


|| कुंकुमचंदनलेपितलिंगम पङ्कजहारसुशोभितलिंगम
सञ्चित्पापविनाशनलिंगम   तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || ५

|| देवगणार्चितसेवितलिंगम भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम
दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || ६


|| अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भवकारणलिंगम
अष्टदरिद्र विनाशित लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || ७

|| सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम सुरवनपुष्प सदार्चितलिंगम
परात्परपरमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम || ८

|| लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं  य: पठेच्छिवसन्निधौ
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते || ९


|| इति श्री लिंगाष्टकस्त्रोत्रं  सम्पूर्णम ||



सौजन्य से :-

Tuesday, April 7, 2020

|| श्रीरामश्लाका प्रश्नावली ||



|| श्रीरामश्लाका प्रश्नावली || 

विधि: सबसे पहले अपने दोनों हाथ जोड़कर श्रीरामचन्द्रजी का ध्यान करें  एवं सच्चे मन से उनका सुमिरन कर अपने प्रश्न को मन में दोहराये | उसके पश्चात नीचे दी गई  सारणी में से किसी एक अक्षर पर अपनी अँगुली रखें | अँगुली रखने के पश्चात एक चौपाई बनेगी जो आपके अभीष्ट प्रश्न का उत्तर होगी | 


सु    प्       बि    हो   मु        सु   नु    बि    धि   

     रु     सि  सि  रें  बस   है   मं           

    सुज      सी     सु   कु                 

  धा   बे   अं  त्य         कु   जो    रि      

की  हो   सं    रा     पु    सु     सी   जे           

सं     रे  हो  स    नि                        

        चि           तु   म   का           

मा    मि    मी    म्हा           जा    हु    हीं          जू  

ता     रा     रे     री        ह्र       का     खा    जि          

      रा    पू               नि     को     मि     गो         

            ने    मनि                     हि 

रा       स    रि                खि   जि     मनि  

    जं     सिं    मु          कौ    मि            धु  

   सु    का          गु                नि     

             ती       रि       ना    पु    व्      

ढा           का      तू             नु          सि  

  सु     हा    रा           हिं                    

         सा     ला    धी       री   जा   हू    हीं  

षा   जू        रा     रे || 


सौजन्य से :-

जन्म-कुण्डली का कौन-सा भाव क्या दर्शाता है ?

जन्म-कुण्डली का कौन-सा भाव क्या दर्शाता है ? 


प्रथम भाव: प्रथम भाव्  शरीर, रंग, शारीरिक बनावट, रूप,  ज्ञान, बल, मस्तिष्क, स्वभाव, विवेक, गौरव, विनम्रता , अच्छा या बुरा स्वास्थय जीवन का प्रारम्भिक भाव, बच्चे का व्यक्तिगत विकास तथा उसके संपूर्ण चरित्र का प्रतीक है | 


द्वितीय भाव: यह भाव कुटुम्ब या परिवार के नाम से जाना जाता है | द्वितीय भाव माता-पिता , अभिभावक, वाणी, भोजन, जिह्वा, सत्य-असत्य, दान, दायाँ नेत्र , पड़ोसी ,  धन की  प्राप्ति और मृत्यु का भी प्रतीक है | 

तृतीय भाव: परम्परागत रूप से तृतीय भाव  छोटे भाई-बहिनों, छोटी यात्राएँ, स्वयं का पराक्रम-धैर्य, पत्र, खेल कलात्मक क्षमता, आयु, माता की मृत्यु, गुप्त शत्रु, गले, कर्ण एवं श्वास सम्बन्धी रोग और लेखन का प्रतीक है| 

चतुर्थ भाव: यह भाव माता, सुख, अचल सम्पत्ति, भूमि, यातायात साधन या वाहन, फेफड़े, हृदय का ऊपरी भाग, गड़ा  हुआ धन, छाती का ऊपरी भाग, प्रसन्नता, कलाकार, मन  का प्रतीक है | 

पंचम भाव: यह भाव शिक्षा,बुद्धिमत्ता, यश, कीर्ति, धर्म, मंगल-कार्य, छाती के निचले भाग से सम्बंधित रोग, संतान और मानसिक क्षमता का प्रतीक है | 

षष्टम भाव: यह भाव बीमारियाँ, ऋण, चिन्ता, मुकदद्मेबाज़ी, उदर के ऊपरी भाग से सम्बंधित रोग, शोक, दुःख, अपयश, धन का संचय , जोखिम भरे कार्य और पिता का व्यवसाय दर्शाता है | 

सप्तम भाव: यह भाव जीवनसाथी, विवाह, पत्नी, प्रेमिका, यौन जीवन, काम वासना, दैनिक व्यवसाय, जननेन्द्रियाँ , शत्रु, व्यापारिक साझेदारी, विदेश एवं मृत्यु का भी बोध करता है | 

अष्टम भाव: यह भाव आयु, जीवन, आकस्मिक परिवर्तन, दुर्घटना, असाध्य रोग, उदर के निचले भाग से सम्बंधित रोग, अचानक आर्थिक लाभ, विरासत,वसीयत, पैतृक संपत्ति, लम्बी बीमारी, मृत्यु का कारण दर्शाता है | 

नवम भाव: यह भाव भाग्य का भाव होने के साथ - साथ आध्यात्मिक प्रवृतियाँ , भक्ति, संन्यास, शिक्षा, गुरु, साला-साली, यश, तीर्थ यात्राएं, पूजा-पाठ और धार्मिक कार्य दर्शाता है |

दशम भाव: यह भाव व्यक्ति का व्यवसाय, राजयोग, पद, प्रभुता, अधिकार, प्रसिद्धि, सम्मान, आदर, प्रतिष्ठा दर्शाता है | 

एकादश भाव: यह भाव लाभ, उपाधियाँ, बड़े भाई-बहिन, व्यापार से लाभ, कान, पुत्रवधु और मनोकामनाओं की पूर्ति होना दर्शाता है | 

द्वादश भाव: यह भाव हानि, व्यय , शैया सुख, बायाँ  नेत्र, मोक्ष,  विदेश यात्राएं, विदेशों  से व्यापार, कारागार , कैद,  का बोध कराता है | 


सौजन्य से :-

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