Sunday, February 23, 2020

सरस्वतीस्तोत्रम

श्री सरस्वतीस्तोत्रम 
ॐ या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्र्वस्त्रावृता |  
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना  ||  
या ब्रह्माच्युतशङ्कर प्रभृतिभिर्देवैः  सदा वन्दिता  | 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा |   
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति: | 
एताभि पाहि तानुभिरष्टभिर्मां सरस्वति  || 
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः | 
वेदवेदान्तवेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च || 
सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने | 
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां  देहि नमोस्तुते || 
यदक्षरं पदं भरष्टं मात्राहीनं च यद् भवेत् | 
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि  प्रसीद परमेश्वरि || 

हिंदी-अनुवाद 
जो कुंद के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत है, जो शुभ्र कपड़े   पहनती है, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित है, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं |  वह  भगवती सरस्वती मेरा पालन करें | 
हे सरस्वती ! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति - इन आठ मूर्तियों से मेरी रक्षा करो| 
सरस्वती माता को नित्य नमस्कार है , भद्रकाली को नित्य नमस्कार है और वेद, वेदांत, वेदाङ्ग तथा विद्या के स्थानों को प्रणाम है
हे महाभाग्यवती ज्ञानस्वरूपा कमल के समान विशाल नेत्रोंवाली, ज्ञानदात्री,  सरस्वती मुझको विद्या दो , मैं आपको प्रणाम करता हूँ, 
 हे देवी  जो  अक्षर, पद छूट गया हो, उसके लिए क्षमा करो और हे ! परेमश्वरि प्रसन्न होकर मुझ पर कृपा करो | 
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Saturday, February 22, 2020

गुरु-वंदना


गुरु-वंदना 

ॐ अज्ञानितिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया | 
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः || 
मन्त्रसत्यम पूजासत्यम सत्यमेव निरंजनम | 
गुरुर्वाक्यं सदा सत्यम सत्यमेव परमं पदम् || 
अखंडमंगलाकारम व्याप्तं येन चराचरम | 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः || 
पितृ-मातृ-सुह्र्द-बन्धु-विद्या-तीर्थानि देवता | 
न तुल्यं गुरुणां  शीघ्रं स्पर्शमेव परम पदम् || 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः | 
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः || 
ध्यान मूलम गुरुः मूर्तिं  पूजा मूलं गुरुः  पदम् | 
मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरुः  कृपा || 
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ध्यानमूर्तिम | 
द्वन्द्वातीतम गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम ||  
एकम नित्यं विमलमचलं सर्वधी  साक्षीभूतम | 
भवातीतम त्रिगुणरहितम सदगुरुम तन्नमामि ||  
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फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष आमलकी एकादशी व्रत माहात्म्य

फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष आमलकी  एकादशी व्रत माहात्म्य 

श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी से कहा ! हे धर्म राज  फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी है | इसका माहात्म्य सुनो | 


एक समय राजा मान्धाता ने वशिष्ठ  मुनि जी से पूछा कि मासानुसार फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष हेतू समस्त पापों का नाश करने वाला कौन सा व्रत है ? कृपा कर बताए वशिष्ठ मुनि जी बोले- प्राचीन समय की बात है  वैश्य नाम की नगरी में चंद्रवंशी राजा चैत्ररथ नाम का राजा राज्य करता था | वह बड़ा धर्मात्मा था, प्रजा भी उसकी वैष्णव थी | बालक से लेकर वृद्ध तक आमलकी एकादशी का व्रत किया करते थे | एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आयी और नगर निवासियों ने रात्रि को जागरण किया, मंदिर में कथा कीर्तन करने लगे | एक बहेलिया जो कि जीव हिंसा से उदर  पालन किया करता था |मंदिर में कथा कीर्तन के समय एक कोने में जा बैठा | आज वह शिकारी घर से दुखी होकर आया था | उसने दिन भर कुछ खाया - पिया भी नहीं  था और रात्रि को समय व्यतीत करने हेतू  मंदिर में आकर  बैठ गया था  | उसी समय वहाँ श्री विष्णु भगवान् की कथा एवं आमलकी एकादशी व्रत का गुणगान सुनाया जा रहा था जो कि उसने भी सुना , रात्रि पहर व्यतीत हो जाने पर प्रातः काल होते ही वह अपने घर को चला गया | कुछ समय  पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी किन्तु उसने अपने पिछले जन्म में आमलकी  एकादशी व्रत का माहात्म्य सुना था तो उस आमलकी एकादशी व्रत के प्रभाव से उसका अगला जन्म एक महान राजा विदूरथ  के घर हुआ | उस बहेलिये का नाम इस जन्म में राजा वसूरत प्रसिद्द  हुआ | एक दिन राजा वसूरत वन विहार हेतू जंगल की ओर  गया किन्तु दिशा का ज्ञान न हो पाने के कारण वह मार्ग में भटक गया किन्तु  रात्रि अधिक होने के कारण राजा वसूरत  रात्रि  पहर व्यतीत करने हेतू  एक वृक्ष के नीचे सो गया | उस दिन आमलकी एकादशी थी और समस्त राज्य में बालक से लेकर वृद्ध तक ने आमलकी एकादशी का व्रत धारण किया हुआ था अतएव राजा वसूरत  ने भी आमलकी  एकादशी का व्रत ले रखा था | उस समय राजा न्यायिक हुआ करते थे जिसके चलते राजा वसूरत ने मलेच्छों के सम्बन्धियों को किसी दोष के कारण दण्डित किया हुआ था | मलेच्छों का एक समूह उसी रात्रि जंगल मार्ग से होकर गुजर रहा था तभी उनकी दृष्टि सोये हुए राजा वसूरत पर पड़ी | मलेच्छों को राजा से अपने सम्बन्धियों के दंड का बदला लेना था | उस समय सोते  हुए राजा ने भगवान् का ध्यान लगाया हुआ था | जैसे ही मलेच्छों  का समूह  राजा वसूरत को मारने के लिए आगे बढ़ा  उसी समय राजा वसूरत के शरीर से एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई यह कन्या आमलकी  एकादशी के  व्रत के प्रभाव से उत्पन्न हुई थी | कन्या ने सोये हुए एवं भगवान् श्री विष्णु जी के ध्यान में लगे हुए  राजा वसूरत को बचाने हेतू  कालिका माता के समान मलेच्छों पर अपना खप्पर फिराया और मलेच्छों के रुधिर की भिक्षा लेकर अंतर्ध्यान हो गई | प्रातः काल  होते ही राजा वसूरत जैसे ही निद्रा से उठा उसने अपने चारों ओर मलेच्छों को मरा हुआ देखा | राजा वसूरत तभी मन ही मन  कहने लगा एवं आश्चर्य करने लगा कि मेरी रक्षा किसने की होगी ? तभी आकाशवाणी हुई  कि हे राजन! आमलकी  एकादशी के प्रभाव से भगवान् श्री विष्णु जी ने तुम्हारी रक्षा की है इतना सुनते ही राजा वसूरत अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने राज्य में  पहुँचकर सभी ब्राह्मणो को बुलाकर मंत्रोच्चार सहित भगवान् श्री विष्णु जी का सुमिरन करने लगा एवं भक्ति भाव सहित प्रत्येक फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष को आमलकी  एकादशी का भी पूजन करने लगा| जो मनुष्य आमलकी एकादशी का व्रत धारण करते हैं, वे अपने प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अन्त में विष्णुलोक को प्राप्त होते  हैं।
|| इति  आमलकी  एकादशी माहात्म्य समाप्त || 
सौजन्य से :-

Monday, February 17, 2020


ॐ भूर्भुव: स्वः |  
तत्सवितुर्वरेण्यं || 
भर्गो देवस्य धीमही | 
धियो यो नः प्रचोदयात || 
सौजन्य से :-

Sunday, February 16, 2020

चन्द्र -यन्त्र

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चन्द्रमा  मन का प्रतिनिधित्व करता है और यह समस्त ग्रहों में सबसे तेज़ गति से चलने वाला ग्रह है | चंद्रमा मनुष्य के जीवन में, मस्तिष्क, बुद्धिमता,स्वभाव,आत्मविश्वास आदि पर अपना आधिपत्य रखता है | यदि जो मनुष्य इन सभी से सम्बंधित समस्याओं का सामना कर रहे होते हैं उन्हें तुरंत ही चन्द्र -यन्त्र  की  प्राण- प्रतिष्ठा कर चंद्र - यन्त्र को अपने निवास-स्थान पर विराजमान करना चाहिए| |
सौजन्य से :-
|| ज्योतिषाचार्य संजीव जोशी || 
विशेषज्ञ : जन्म-कुण्डली - विवाह - सन्तान - व्यवसाय - मूहुर्त - वास्तु - रत्न
E-Mail : gyanganga108@gmail.com| Contact No. 9582114693|

Saturday, February 15, 2020

Wednesday, February 5, 2020

दुख सफलता का आधार


“ दुख ” सफलता का आधार ?         
                                      
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार इस सांसारिक जीवन में काम, क्रोध, लोभ एवम् मोह को दुख का कारक बताया गया है एवं कहा गया है कि  काम, क्रोध, लोभ एवम् मोह का जो त्याग कर जीवन व्यतीत करता है वह दुख से कोसो दूर रहता है | प्रत्येक मनुष्य रूपी जीव संतों के समागम का सहारा लेकर अपने को इन्ही सब कारणों से दूर रखने का भरपूर प्रयास करता है एवम् सोचता है कि कोई ऐसी तकनीक निर्मित हो जिसके कारण दुख का अंत हो जाये किन्तु आज के इस  वैज्ञानिक युग में भी दुख को दूर करने की कोई तकनीक मानव जीवन हेतु पूर्ण रूप से निर्मित नहीं हो पायी है सांसारिक जीवन में मनुष्य रूपी जीव दुख को दूर करने के लिए  क्या - २ उपाय नहीं करता कभी मंदिरों में भगवान के समक्ष उपस्थित हो अपने दुखों का बखान करता है तो कभी जादू - टोनो का सहारा ले अपने को दुख से दूर करने का प्रयास करता है और कभी - कभी अपनी जन्म -कुंडली को ज्योतिषाचार्यों के समक्ष प्रस्तुत कर अपने दुख के निवारण हेतु उनसे प्रार्थना करता है | किन्तु वह यह भूल जाता है कि दुख तो एक कठोर मार्ग दर्शक है जो कि सदैव मनुष्य रूपी जीव के साथ अपना लगाव बनाये रखता है एवं उसे अपने लक्ष्य के प्रति सचेत बनाये रखता है | लेकिन सोचने योग्य तथ्य यह है की जन्म -कुंडली के अंदर छठे, आठवें और बारहवें भावों के अलावा  दुख का भाव और कौन सा है और दुख मनुष्यरूपी जीव को कौन से भाव से मिलता  है समस्त जन्म -  कुंडली का अवलोकन करने के पश्चात जिस भाव का ज्ञात होता है वह  है जन्म -कुंडली का पंचम भाव  क्योंकि पंचम भाव ही है जो मनुष्यरूपी जीव को  पूर्व जन्म के कर्मों  के अनुसार  फल प्रदान करता है एवं जन्म - कुंडली के द्वारा  घटित होने वाली घटनाओं जो की मनुष्यरूपी जीव को वर्तमान में , भविष्य में जन्म -कुंडली के छठे , आठवें और बारहवें भावों पर विराजित ग्रहों के अनुसार प्राप्त होती है उसका अनुसरण करता है|

सांसारिक जीवन में जिन्होने दुख को सफलता का आधार मान पूर्ण रूप से स्वीकृत किया है वे ही सदैव अग्रणी रहे है एवम् जिन्होने दुख से अपने को कोसो दूर रखने का प्रयत्‍न किया है वे इस सांसारिक जीवन में सदैव एक कुऐं के मेढक की भांति उजागर हुए है |

सही अर्थो में दुख क्या है ?

१। क्या अपनी आवशयकताओं के अनुसार लाभ प्राप्त न हो पाना ये दुख है ?

२। क्या अपने मन को हर क्षण चिंतित बनाये रखना ये दुख है ?

वास्तविकता में दुख तो एक कठोर मार्गदर्शक है जो मनुष्यरूपी जीव को उसके लक्ष्य के प्रति सजग रखता है एवम् उसको उसके लक्ष्य की प्राप्ति प्रदान करता है |

ज्योतिषीय दृष्टिकोण के आधार पर:-
 आज प्रत्येक मनुष्यरुपी जीव अपनी दुखी अवस्था में अपनी जन्म - कुंडली का सहारा लेता है अर्थात अपने दुख को दूर करने हेतु ज्योतिषाचार्यों की सलाह का अनुसरण करता है किन्तु जन्म - कुंडली का अध्ययन करने के पश्चात जब समस्त ज्योतिषाचार्य मनुष्यरुपी जीव को निम्न प्रकार के उपाय प्रदान करते है और उन उपायों के अनुसार मनुष्यरुपी जीव को मजबूती के साथ डटें रहने के लिए प्रेरित करते है तब उन उपायों का मजबूती के साथ पालन करना भी मनुष्यरूपी जीव के लिए दुख स्वरुप हो जाता है |
ज्योतिष को आधार मान समस्त ज्योतिषाचार्य जन्म- कुंडली के तीन भावों (घरों) को मनुष्यरूपी जीव के दुख का आधार मान इन भावों से बचने की सलाह मनुष्यरूपी जीव को  प्रदान करते है किन्तु जब कुंडली का पूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है तो ज्ञात होता है कि जन्म - कुंडली के अंदर ये तीन भाव (घर) ही मनुष्यरूपी जीव के लिए क्षणिक भर के सुख का निर्माण करते है और उसके बीते हुए दुख को सम्मान के  रूप में समस्त सृष्टि के बीच उजागर भी करते है अर्थात कालपुरुष कुंडली का अध्ययन करने के पश्चात जन्म-  कुंडली का छठा भाव (घर) जिस भाव (घर) पर कन्या राशि का उदय होता है जिसका स्वामी स्वयं बुद्ध ग्रह होता है एवं जिस भाव को मनुष्य रुपी जीव के  लिए कष्टकारी भी माना जाता है दुसरे शब्दों में दुख का कारक माना जाता है उसी कन्या राशि का स्वामी बुद्ध ग्रह अपने



इस भाव (घर) पर अपनी उच्च अवस्था का माना जाता है अन्तः ये भाव मनुष्यरूपी जीव की कुशाग्र बुद्धि को उजागर करता है और उसे अपने दुखों को अपना मान सफलता के रथ पर चढ़ने के लिए प्रेरित करता है |
इसी प्रकार जन्म - कुंडली का आठवां एवं गुप्त भाव (घर) जिस भाव (घर) पर वृश्चिक राशि का उदय होता है एवं जिस भाव को अमंगल का कारक माना जाता है उसी भाव का स्वामी स्वयं मंगल ग्रह होता है | इस भाव पर मनुष्यरूपी जीव का चन्द्र ग्रह नीच का हो जाता है अर्थात चन्द्र ग्रह की तुलना हम मनुष्यरूपी जीव के मन से करते है वह मन जो कि मनुष्यरूपी जीव को चंचल युक्त भी बनाता है एवं मंगल ग्रह के  भाव (घर) में होने की कारण साहसी भी  |

 जिस कारण एक हिंदी कहावत भी प्रसिद्द है कि "मन की हारे हार है | मन की जीते जीत || " किन्तु चंचल युक्त मन के कारण कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता अतएव चन्द्र ग्रह या मन की नीच अवस्था यहाँ पर मनुष्यरूपी जीव को दुख की स्तिथि प्रदान करती है जिस कारण मनुष्य अपने को दुखी महसूस करता है किन्तु मनुष्य रुपी जीव को यहाँ पर मंगल की साहसिक स्तिथि का भी ज्ञान होना चाहिए क्योंकि दुख ही है जो मनुष्यरुपी जीव के अंदर भरपूर साहस का निर्माण करता है |
अंत में दुख का प्रमुख केंद्र जो कि जन्म - कुंडली का बारहवां भाव (घर) है

जिसे हम व्यय भाव के  नाम से भी जन्म-कुंडली के अंदर प्रसिद्धि प्रदान  करते है  किन्तु ये भूल जाते है कि ये वही भाव (घर) है जिसका स्वामित्व दैवीय गुरु बृहस्पति को प्रदान किया गया है जिस कारण ये भाव (घर) अत्यन्त शुभ माना गया है इस भाव (घर) पर चिंताजनक जो तथ्य है वह दैत्य गुरु शुक्र ग्रह का उच्च का होना है इस आधार पर ज्ञात होता है कि शुक्र ग्रह ही है जो मनुष्यरूपी जीव को सुख - संसाधनो की और प्रेरित करते है एवं लालायित करते है जिस कारण फिर से मनुष्यरूपी जीव अपने को दुख के  चक्रव्यूह में फंसा हुआ महसूस करता है एवं अपने को इस भाव से बचाने का प्रयास भी  करता है किन्तु वह यह भूल जाता है कि जिस भाव (घर) को वह दुख मान रहा है वह भाव (घर) तो उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की लिए प्रेरित एवं लालायित कर रहा है और बृहस्पति ग्रह का भाव होने के कारण उसे परमात्मा का अनुसरण करने के लिए बाध्य भी कर रहा है  |
“अतएव यदि परमात्मा का नियमित रूप से अनुसरण करना और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सुख का त्याग करना दुख है तो वह दुख मनुष्यरूपी जीव के लिए सफलता का आधार है |”
चलो चले ज्योतिष की औरअंधविश्वास से विश्वास की और ||
सौजन्य से :-


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